जो देशहित का सोचते हैं 'अटल' 'पार्रिकर' बनते हैं जो देशहित का सोचते हैं 'अटल' 'पार्रिकर' बनते हैं
उस हाथ को सहना पड़ रहा है जूते- चप्पलों का भार। उस हाथ को सहना पड़ रहा है जूते- चप्पलों का भार।
यह कैसा लोकतंत्र हमारा ? और यह कैसे आजादी हमने पायी हैं। यह कैसा लोकतंत्र हमारा ? और यह कैसे आजादी हमने पायी हैं।
भागते हैं.....? दिन-रात दो वक्त की, रोटी कमाने के लिए। भागते हैं.....? दिन-रात दो वक्त की, रोटी कमाने के लिए।
वक्त की तेज़ धूप ने सब ज़ाहिर कर दिया है खरे सोने पर ऐसी बिखरी की उसकी चमक को काफ़ूर क वक्त की तेज़ धूप ने सब ज़ाहिर कर दिया है खरे सोने पर ऐसी बिखरी की उसकी चम...
सुबह ने रफ़्तार पकड़ ली है अलार्म की घंटी बजते ही इंसान भागता है दिन रथ के घोड़े तै सुबह ने रफ़्तार पकड़ ली है अलार्म की घंटी बजते ही इंसान भागता है दिन रथ ...